Poems for Kids in Hindi | 5 हितोपदेश Best Hindi Story Poems-kahani

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हिंदी कविता बच्चो केलिए Hindi poems for kids, यह  कविता (Poems for Kids in Hindi  ) हितोपदेश की कहानी पर आधारित है जो बचो में लयबद्ध रूप से मनोरंजन के साथ मानव व्यव्हार के अनुरूप नैतिक शिक्षा पर आधारित (Moral Value Based best  hindi kavita for kids ) है

यह नर्सरी या प्राइमरी स्कूल के साथ साथ ,पालक ,शिक्षक  के लिए ( nursery hindi poems )  हिंदी विषय के अन्तर्गत बोल व तुक पर आधारित कहानियों का छोटा संग्रह है  ( hindi poem lyrics poem for hindi class in hindi)

यह लेख(Hindi Poems-kahani)” घनश्याम मुरारी जी “की अनुपम कृति है जिसे मै  आपके समक्ष कर रहा हूँ

मित्रता पर आधारित कविता (Moral Story)

मित्र लाभ- ( Friends Ki Kahani)

काग एक था चतुर बड़ा ही,
लघुपतनक था उसका नाम,
रहता था सेमल के वृक्ष पर,
आता था वह सबके काम।

एक शिकारी आया एक दिन,
चावल डाले जाल बिछाया,
चतुर काग ने समझाया तो,
कोई पक्षी वहाँ न आया।

तभी अचानक अपने दल संग,
चित्रग्रीव कबूतर आया.
काँव काँव कर लघुपतनक ने,
उन सबको खतरा समझाया।

सभी कबूतर बहुत थे भूखे,
देख के चावल मन ललचाया,
चित्रग्रीव ने भी उन सबको,
कही कहानी यूँ समझाया।

सोचो तो इस जंगल में मित्रो,
कहाँ से चावल भोजन आया,
हमें फँसाने को ही साथियो,
यहाँ किसी ने जाल बिछाया।

नहीं बात मानी उन सबने,
नीचे उतरे चावल खाने,
फँसे जाल में सभी कबूतर,
मौत बने चावल के दाने।

Poems for Kids in Hindi

यह कविता Moral Value Based Hindi -Poems with stories अपने बच्चो को सुनाकर  क्या  प्रतिक्रिया होती है  जरूर एक बार आजमाइए 

अब एक और रोचक कविता -कहानी है गिद्ध व उदबिलाव की देखिये कैसे पिरोया है (Poem with Lyrics in hindi )पोयम इन हिंदी

गिद्ध और बिलाव (Giddha Aur Bilav Ki Kahani )

वृक्ष बड़ा एक पीपल का था,
पास में बहती गंगा धारा,
भाँति-भाँति के पक्षी रहते,
एक-दूजे का मिले सहारा।

वृद्ध गिद्ध भी एक वहाँ था.
था अशक्त सा वह बेचारा,
पक्षी जाते दाना चुगने,
बच्चों का वह था रखबाला।

वनबिलाव चालाक एक था.
पेड़ के नीचे तक वह आया,
ची ची करके बच्चे चीखे,
कौन है गिद्धराज चिल्लाया।

दुष्ट चतुर वह वनबिलाव था,
बोला दादा तुम्हें प्रणाम,
हूँ बिलाव पर संन्यासी हूँ,
गंगा तट पर मेरा धाम।

कहा गिद्ध ने भाग यहाँ से,
नहीं तुझे मैं दूंगा मार,
हाथ जोड़ बोला बिलाव वह,
अरे सुनो तो करो विचार।

छोड़-छाड़ दी हिंसा मैंने,
चन्द्रायण का व्रत करता हूँ,
सुनने को उपदेश धर्म के,
यहाँ-वहाँ जाता रहता हूँ।

सुना आप हैं धर्म के ज्ञाता,
दे दो मुझको धर्म का ज्ञान,
शरण आपकी रख लो मुझको,
हो जावे मेरा कल्याण।

कपट भरी बातों में आकर,
गिद्ध ने उसको पास बुलाया,
कुछ दिन में ही उसे बिलाव ने,
चिड़ियों के बच्चों को खाया।

गिद्ध बेचारा अंधा सा था
यह सब उसने देख न पाया.
चिड़ियों को जब पता चला तो.
गिद्ध को ही दोषी ठहराया।

मिलकर के सब पक्षी आये,
वृद्ध गिद्ध को डाला मार,
दुष्ट विलाव जा छिपा मजे से,
काम करो सब सोच-विचार।

हितोपदेस एक जातक कथाओं का संग्रह जिसे विष्णु गुप्त शर्मा द्वारा लिखा गया है जिसे घनश्याम मुरारी जी ने कविता या (Poems ) के रूप में कहानी को लिखा है

जिसका अंश हमने Poems for Kids in Hindi के रूप में लाया है 

अब आगे एक मक्कार सियार की कहानी  को पढ़िए

धूर्त सियार ( Makkar Siyar Ki Kahani) Poems for Kids in Hindi

एक काग और हिरण सुनहला,
जंगल में हिल-मिल कर रहते,
घनी मित्रता थी दोनों में,
मिल-जुलकर सब सुख-दु:ख सहते।

था चालाक सियार एक वन में,
मोटा हिरण देख ललचाया,
कैसे खाऊँ गोश्त मैं इसका,
सोच हिरण के पास में आया।

बोला मैं हूँ भूला-भटका,
तुम्हें देख मेरे मन आया,
मित्र बना लूँ, गले लगा लूँ,
सुना हिरण ने यूं समझाया।

मित्र हमारे कागराज हैं,
यहीं पेड़ पर हैं रहते,
चलो पूछ लैं पहले उनसे,
नहीं अकेले हम कुछ करते।

Poems for Kids in Hindi-

कौआ से पूछा! वह बोला,
नहीं दोस्ती उचित तुम्हारी,
नहीं जानते हैं हम तुमको,
बिन समझे कैसे हो यारी।

धूर्त सियार भी झट से बोला,
तुम दोनों भी कैसे मित्र,
यह जमीन पर तुम पेड़ों पर,
कैसी यारी अरे! विचित्र।

हम दोनों ही चौपाये हैं,
हम साथ-साथ ही जायेंगे,
हरे-भरे जंगल में जाकर,
हरी घास खिलवायेंगे।

बातों में आ गया हिरण वह,
मित्र बनाया उस सियार को,
बात न मानी मित्र काग की,
गले लगाया मक्कार को।

हिरण सियार अब साथ घूमते,
एक दिन उसे खेत में लाया,
हरी घास का लालच देकर,
वहाँ कृषक ने जाल बिछाया।

फँसा बेचारा हिरण जाल में,
मन ही मन सियार हरषाया,
मित्र निकालो मुझे जाल से,
तड़फ-तड़फकर मृग चिल्लाया।

धूर्त सियार बोला व्रत मेरा,
नहीं काट सकता मैं जाल,
घबराया सब समझ हिरण वह,
सोचा सचमुच आया काल।

तभी खोजता उड़ता कौआ,
देख हिरण को पास में आया,
मरे हुये से पड़े रहो तुम,
चतुर काग ने सब समझाया।

लिये कुल्हाड़ी आया मालिक,
देखा हिरण फँसा है माल,
मरा हुआ सा देखा उसको
लापरवाही से काटा जाल।

ज्यूँ ही जाल कटा देखा तो.
काँव-काँव कौआ चिल्लाया,
मृग ने भरी चौकड़ी भागा,
नहीं कृषक कुछ समझ ही पाया।

फैंक कुल्हाड़ी मारी उसने
नहीं लगी वह कहीं हिरण में,
झाड़ी छिपा सियार बैठा था,
लगी कुल्हाड़ी उसके सिर में।

ढेर हआ चालाक सियार वह.
कौआ ने ही मित्र बचाया,
सोच-समझकर करो मित्रता,
गुरु ने शिष्यों को समझाया।

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लोभ बुरी भला ( Lobhi Bramhan Ki Kahani )

बाघ एक था चतुर भयंकर
पर था वह बूढ़ा लाचार
इसीलिये भूखा कई दिन
नहीं मिला था कोई शिकार

पास में थे कंगन सोने के, –
बाघ ने मन में किया बिचार,
नहा सरोवर में कुश लेकर,
कंगन दिखाकर रहा पुकार।

आओ भाई पास में आओ,
ले लो ये कंगन का दान,
भयवश कोई पास न जाता,
पर नहीं होते सभी समान। ‘

ब्राह्मण था एक बड़ा लालची,
बोला कैसे लूँ मैं आपसे दान,
पास आऊँगा कंगन लेने,
ले लोगे तुम मेरी जान।
कहा बाघ ने घबराओ मत,
करो विप्र मेरा विश्वास,
बहुत पाप हत्याएँ की हैं,
लिया है पर अब मैंने संन्यास।

कुछ तो पुण्य कमा लूँ अब मैं,
विप्र देवता पास में आओ,
सोने के ये कंगन ले लो,
नहीं खाऊँगा मत घबराओ।

चालाकी की बातें सुनकर,
विप्र फँसा लालच में आया,
गया पास वह कंगन लेने,
पकड़ बाघ ने उसको खाया।

विप्र फँसा लालच में आकर,
व्यर्थ गँवा दी अपनी जान,
लालच में नहीं व्यर्थ ही फँसते,
जो होते हैं चतुर सुजान।

Poems for Kids in Hindi

अति लालच का फल ( Lalachi Ki Kahani) Poems for Kids in Hindi

शहर एक कल्याण नाम का,
एक शिकारी उसमें रहता,
रोज-रोज जंगल में जाकर,
पशु-पक्षी वह मारा करता।

एक बार एक हिरण मारकर,
कंधे पर रखकर जाता था,
देखा उसने सुअर बड़ा सा,
चला सामने आता था।

नीचे रखा हिरण को उसने,
की किया बाण का अनुसंधान,
लगा निशाना अपने धनु से,
छोड दिया था तीखा बाण।

घायल सुअर पलटकर दौड़ा,
हुआ क्रोध में वह विकराल,
किया आक्रमण सीधा उसने, –
बना शिकारी का वह काल।

मरा शिकारी मरा सुअर भी,
मरा वहीं दबकर एक साँप,
मानो एक साथ तीनों के,
मत्य बनकर आये पाप।

तभी वहाँ एक गीदड़ आया
दीर्घराव था उसका नाम,
चार-चार शव पडे वहाँ थे.
सोचा बन गया मेरा काम।

महिना भर का भोजन है यह,
हिरण, सुअर यह नर और सर्प,
छाती फुला-फुलाकर नाचा,
हुआ न जाने कितना दर्प।

देखी उसने धनुष की डोरी,
लगा खून था लगा था खाने,
सोचा पहले इसे ही खाऊँ,
जोर-जोर से लगा चबाने।

निकली डोरी धनुष अचानक ,
जोर से छूटा एक किनारा ,
लगा पेट में गीदड़ के वह ,
लालच ने गीदड़ को मारा

इतना सारा पड़ा था भोजन ,
गीदड़ ने डोरी को खाया ,
अति लालच ने जान ली उसकी
गुरु ने शिष्यों को समझाया

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