आज हम लेकर आए प्रेरणादायक हिंदी कहानियां Prerak kahani in Hindi ,प्रेरक प्रसंग , प्रेरक कहानी ,Motivational Story in Hindi उम्मीद है आपको जरूर पसंद आयेगा।
Prerak kahaniyan | प्रेरणादायक हिंदी कहानियां
श्रम में शर्म कैसी -प्रेरक प्रसंग
बात तब की है जब अमेरिका स्वतन्त्र होने के लिए जूझ रहा था। एक दिन किसी किले की किलेबन्दी की जा रही थी। यह कार्य एक नायक कुछ सैनिकों की सहायता से करवा रहा था। किले की दीवार पर एक भारी लकड़ी को चढ़ाया जा रहा था। बार-बार प्रयास करने पर भी सैनिक उसे दीवार पर चढ़ाने में सफल नहीं हो रहे थे। नायक पेंट की जेब में हाथ डाले दूर खड़े रहकर सैनिकों को ललकार रहा था। तभी एक सज्जन घोड़े पर सवार उधर आ निकला। उसने नायक से कहा-“आप यहाँ खड़े होकर व्यर्थ समय और शक्ति क्यों बरबाद कर रहे हैं। लकड़ी उठवाने में आप भी शक्ति लगाते तो यह लकड़ी आसानी से चढ़ जाती।”
‘शायद तुम जानते नहीं मैं इस टुकड़ी का नायक हूँ।” यह काम मेरा नहीं मेरे सैनिकों का है।” नायक गुस्से से बोला।
‘क्षमा चाहता हूँ, मैंने आपको पहचानने में भूल की।” यह कहकर वह सज्जन घोड़े से उतरा और सैनिकों के साथ लकड़ी चढ़ाने में जुट गया। लकड़ी किले पर चढ़ गई। वह सज्जन घोड़े पर चढ़कर जाने लगा तो नायक ने उसे धन्यवाद दिया। इस पर सज्जन ने कहा-“धन्यवाद की जरूरत नहीं है। यह काम आपका नहीं, मेरा था।
आपको जब कभी ऐसे काम में जरूरत पड़े तो अपने इस प्रधान सेनापति को याद कर लिया करें, क्योंकि वह जानता है कि राष्ट्र का निर्माण झूठी शान बघारने से नहीं होता। श्रम हेय नहीं गौरव की बात है।”
सैनिक टुकड़ी का नायक अपने प्रधान सेनापति को देखता रह गया।
विजय का गर्व-Prerak Kahani in Hindi
एक बार सिंह को देखकर मधुमक्खी ने सोचा कि जो सिंह के पास है वही सब मेरे पास भी है। हाथ-पैर, पूँछ, मूँछें। बस तुरन्त सिंह को ललकार दिया।
सिंह भी गरज उठा। मधुमक्खी ने वार शुरू कर दिया। वह शेर को डंक मारती और उड़ जाती। शेर समझ नहीं पा रहा कि इस छोटे से जीव से कैसे लड़े। शेर के शरीर पर जहाँ मधुमक्खी बैठती वह जोर से पंजा मारता मधुमक्खी उड़ जाती थोड़ी ही देर में शेर का शरीर लहू-लुहान हो गया, मधुमक्खी अपने वार करती रही। अन्त में सिंह थककर चूर हो गया। उसके शरीर से काफी खून भी निकल गया था। आखिर शेर अपने ही हाथों घायल होकर मर गया।
विजय के गर्व में फूली मधुमक्खी अपनी विजय कहानी सबको सुनाती रही। दौड़-दौड़कर अपनी जीत का हाल बताने में इतनी बावली हो गई कि एक पेड़ पर बना मकड़ी का जाला नहीं देख पाई और उसमें फँस गई। जाले में तड़प-तड़प कर मर गई। मकड़ी का भोजन बन गई।
मधुमक्खी जीत के घमण्ड में यह भूल गई कि केवल ताकत से ही विजय नहीं होती। वक्त और स्थान का भी महत्त्व होता है। बलवान और ताकतवर भी किसी जगह एकदम असहाय और कमजोर पड़ जाता है।
बड़प्पन-Stories Hindi
एक बार एक महात्मा अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक तालाब आया। तालाब में ढेर सारी मछलियाँ थीं। महात्मा उस तालाब के किनारे रुके और मछलियाँ पकड़-पकड़कर निगलने लगे। गुरु को ऐसा करते देख शिष्य भी तालाब में उतर गए और मछलियाँ खाने लगे। महात्मा ने शिष्यों को अपनी नकल करते देखा पर बोले कुछ नहीं। थोड़ी देर बाद महात्मा आगे बढ़े। आगे गाँव में एक तालाब मिला। इस तालाब में मछलियाँ नहीं थीं। महात्मा यहाँ निगली हुई मछलियाँ उगलने लगे ताकि इस तालाब में भी मछलियाँ हो जाएँ। शिष्यों ने गुरु को मछलियाँ उगलते देखा तो भौंचक्के हो गए। उन्होंने देखा कि महात्मा तो जीती-जागती मछलियाँ उगल रहे हैं। तो शिष्यों ने भी गले में उँगलियाँ डालकर मछलियाँ निकालना शुरू किया। उल्टी में कुछेक मछलियाँ निकलीं, वह भी सब मरी हुई।
महात्मा ने तब शिष्यों से कहा-“अगर तुम में मुझ जितनी शक्ति नहीं थी कि तुम मछलियों को मेरी तरह जीती जागती रख सको, तो तुमने मेरी नकल क्यों की? बड़ों की नकल करने भर से बड़प्पन नहीं मिल जाता, यह हमेशा ध्यान रखना।”
असावधानी- Motivational Stories
सैकड़ों बरस पहले की बात है। ब्रह्म देश का राजा अपने महल की तीसरी मंजिल की अटारी पर बैठकर शहद का शरबत पी रहा था। असावधानी से शहद की कुछ बूँदें नीचे टपक पड़ीं जिन्हें चाटने को कुछ मक्खियाँ वहाँ बैठ गयीं। मक्खियों पर एक छिपकली झपटी। छिपकली पर एक बिल्ली टूटी। बिल्ली के शिकार को दो-तीन कुत्ते झपटे। कुत्तों में आपस में लड़ाई हो गई। उनकी तरफदारी को पड़ोस के दरबारी आ गए। दो पक्षों में जमकर लड़ाई हुई। एक पक्ष ने फौज बुला ली, तो दूसरी ओर से कुछ हथियारबन्द नागरिक मैदान में आ गए। सारे शहर में बलवा हो गया। महल को आग लग गयी। शहद की दो बूँदों ने राज्य का सर्वनाश कर दिया। छोटी-छोटी बातें, छोटी-छोटी असावधानियाँ भयंकर स्थितियाँ पैदा कर देती हैं।
विश्वास की जीत -Motivational Story in Hindi
विश्व के महान योद्धाओं में ब्रिटिश सेनापति नेल्सन की भी गिनती की जाती है। नील नदी की भयानक जंग छिड़ने वाली थी। ब्रिटिश जहाज़ी बेड़ों के सेनाधिकारियों को निराशा और हार की आशंका नजर आने लगी थी ऐसी विपत्ति के समय में भी नेल्सन की आँखें आत्मविश्वास और साहस से चमक रही थीं।
एकाएक कप्तान ने कहा-“इस युद्ध में अगर हमारी जीत हुई तो दुनिया दंग रह जायेगी।” नेल्सन ने कप्तान से पूछा-“अगर से तुम्हारा क्या मतलब है?”
कप्तान अचानक इस प्रश्न को सुनकर चौंका। उसे कोई जवाब नहीं सूझा ।
फिर कुछ डरते हुए बोला-“मेरा मतलब है कि हमसे दुश्मन ज्यादा ताकतवर हैं। उनके पास सेना भी अधिक है। उनके पास हथियार भी हमसे कहीं अच्छे और आधुनिक हैं। इन बातों को देखकर लगता है हम दुश्मन के सामने कुछ भी नहीं हैं। इस हालत में हमारी जीत असम्भव है।
” नेल्सन ने कप्तान की बात सुनकर बड़े दृढ़ स्वर में कहा-“जीत का भाग्य से कोई वास्ता नहीं है कप्तान, हमारी जीत जरूर होगी। हम भाग्य के भरोसे नहीं, अपने आत्मविश्वास, बहादुरी, हिम्मत और बल पर जरूर जीतेंगे। चाहे कोई हमारी विजय के गीत गाने वाला जीवित बचे या न बचे, ऐसा हो सकता है।” सेनापति के इन आत्मविश्वास भरे शब्दों ने हर सैनिक के दिल में मानो एक तरह का जादू-सा कर दिया।
भाग्य पर भरोसा छोड़कर सैनिक विश्वास और साहस के साथ युद्ध में जूझ पड़े। उस युद्ध में सचमुच संसार उनकी विजय को देखकर चकित रह गया। यह सच है कि विश्वासऔर साहस की सदा जीत होती है।
भार का सम्मान-नेपोलियन की Hindi कहानी
एक बार महान सम्राट् नेपोलियन बोनापार्ट घूमने को निकले। उनके साथ एक परिचित महिला भी थी। दोनों एक संकरे रास्ते से गुजर रहे थे। महिला नेपोलियन से आगे-आगे चल रही थी। अभी कुछ ही दूर चले थे कि सामने से एक मजदूर आता दिखाई दिया। मजदूर के सिर पर काफी भार था।
महिला उच्च कुल की थी। उसे अपने कुल, पद और धन का घमण्ड था।
घमण्ड में चूर महिला सामने से आते मजदूर के लिए रास्ता कैसे छोड़ देती? वह तो शान से चली जा रही थी मानो उसने मजदूर को देखा ही नहीं।
लेकिन सम्राट् नेपोलियन ने भार से दबे हुए मजदूर को आते देख लिया था। उन्होंने तुरन्त अपनी साथी महिला को एक तरफ खींच लिया और खुद भी एक तरफ हट गए। उन्होंने मजदूर को निकल जाने दिया। उन्होंने महिला को एक ओर खींचते हुए कहा था-‘मैडम, भार को सम्मान दो। जिनके सिर पर भार है,वह चाहे भारी हो या हलका, वे सम्माननीय हैं।’
क्रोध पर विजय – तुकाराम की Prerak kahani
महाराष्ट्र में महान सन्त हुए हैं-तुकाराम। तुकाराम प्रारम्भ से ही बहुत गरीब थे। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। गरीब होते हुए भी वे बहुत दयालू थे। उनके पास दो पैसे ही होते और कोई माँग लेता तो तुरन्त दे देते। एक दिन ऐसी स्थिति आ गई कि उनके पास कुछ भी नहीं रहा। तुकाराम भिक्षा माँगने निकले। सारे दिन घूमने पर भी उन्हें भिक्षा में कुछ भी नहीं मिला।
आखिर हारकर वे अपने खेत से ईख तोड़कर ले आए।जब वे ईख लेकर लौट रहे थे तो कुछ बच्चों ने उनसे ईख माँगी। तुकाराम ने सभी को ईख बाँट दी। उनके पास केवल एक ईख बची। सारे दिन उपवास हो गया। जब उनकी पत्नी ने उन्हें बिना भिक्षा लिए लौटते देखा तो वह मन ही मन गुस्सा हुई और जब तुकाराम ने बच्चों को ईख बाँट देने की बात बताई तो उनकी पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा। उसने तुकाराम द्वारा दिए गन्ने को उनकी पीठ पर दे मारा। ईख के दो टुकड़े हो गए।
तुकाराम पत्नी के इस व्यवहार से तनिक भी विचलित नहीं हुए। न ही उन्हें क्रोध आया। बल्कि जमीन पर पड़े ईख के टुकड़े को उन्होंने उठाकर पत्नी को देते हुए कहा-“अच्छा ही हुआ हम ईख काटने के कष्ट से बच गए। अब एक टुकड़ा ईख तुम खा लो, दूसग टुकड़ा मैं खा लेता हूँ।”
तुकाराम के इस व्यवहार से उनकी पत्नी काफी लज्जित हुई और उन्होंने तुकाराम की तरह अपने क्रोध पर विजय पा ली।
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