देह जल से पवित्र होती है, मन सत्य से, आत्मा धर्म से औरबुद्धि मन से पवित्र होती है। पस्पर विरोधी बातों के बीच एकता कराने अधिक, कटिल काम कोई और नहीं है।ओवेन डिक्सन
केवल वही व्यक्ति बेकार नहीं है जो बैठा रहता है, बल्कि वह भी बेकार माना जाएगा जिसकी योग्यता का पूर्ण लाभ नहीं लिया जाता।-सुकरात
तुम निरंतर कर्म करते रहो, किंतु कर्म में आसक्ति का त्याग कर दो-यही ‘कर्म-योग’ है।
-स्वामी विवेकानंद .
कर्मयोग के अनुसार बिना फल उत्पन्न किए कोई भी कर्म नष्ट नहीं हो सकता। प्रकृति की कोई भी शक्ति उसे फल उत्पन्न करने से नहीं रोक सकती।
-स्वामी विवेकानंद
अपराधी का मन बिच्छुओं से भरा रहता है।-शेक्सपियर
गिद्ध बहुत ऊंचा उड़ता तो है मगर आंख उसकी बराबर मुर्दे पर ही लगी रहती है।
-स्वामी विवेकानंद
महान् व्यक्तियों के जीवन का कोई उद्देश्य होता है। साधारण मनुष्य केवल इच्छाएं रखते हैं।–जार्ज वाशिंगटन
वाणी का वर्चस्व रजत है, किंतु मौन कंचन।-रामधारी सिंह दिनकर
जो मानव एक पाठशाला खोलता है, वह विश्व का एक बंदीगृह बंद कर देता है।-विक्टर ह्यूगो
गंभीर संकट में जब आशा बहुत कम हो, तब निडरता ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।
-लिवी